आगरा: कोरोना संकट के दौरान ऑक्सीजन की कमी है। लोग ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए अलग- अलग उपाय कर रहे है। ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदे जा रहे है। वहीं गांवों में पीपल के पेड़ के नीचें खाट लगाकर सोने की तस्वीरें भी सामने आ रही है। सांसों के लिए प्राण वायु की कमी न हो, इसके लिए एक व्यक्ति पीपल के पेड़ के ऊपर ही खाट लगाकर बैठ गया। तो कुछ लोगों ने पेड़ के नीचे आसान डाल लिया।
मामला आगरा के बरौली अहीर के नौबरी गांव का है। गांव में लगे पीपल के पेड़ के नीचे पाठशाला लगती है। जहां पर ऑक्सीजन का पीरियड लगता है। इसमें बच्चे, बूढ़े और जवान सभी शामिल होते हैं। खास बात ये है कि इस पाठशाला में कोई शिक्षक नहीं है। लेकिन क्लास से कोई छात्र गायब नहीं होता है। नौबरी गांव की आबादी करीब तीन हजार है। इस गांव में 15 दिन पहले एक दंपत्ति की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई थी। दोनों का ऑक्सीजन लेबल कम हो गया था। अस्पताल में उपचार के दौरान दोनों की मौत हो गई।
गांव के नव निर्वाचित ग्राम प्रधान महिपाल यादव ने बताया कि शहर के अस्पतालों में जिस तरह से आक्सीजन को लेकर मारामाराी मची थी। इसके चलते कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इसको देखते हुए ग्रामीणों ने प्रकृति की शरण में जाने का फैसला किया। क्योंकि सबसे ज्यादा ऑक्सीजन पीपल देता है। गांव में करीब तीन दर्जन पीपल के पेड़ लगे हैं।
इस गांव में कोई और कोरोना संक्रमित न हो और उसका ऑक्सीजन लेबल सही रहे। इसके लिए ग्रामीणों ने दो सप्ताह पहले पीपल के पेड़ों के नीचे योग से अपने दिन की शुरूआत करने का संयुक्त रूप से फैसला किया। गांव की प्राथमिक पाठशाला के लंबे-चौड़े परिसर में कई पीपल के पेड़ लगे हुए हैं। इन पेड़ों के चारों ओर चबूतरा बना हुआ है। गांव के सभी लोग सुबह करीब साढ़े छह बजे यहां योग करने पहुंचते हैं। पेड़ों के नीचे करीब एक घंटे तक योग करते हैं। इसके बाद गांव के लोग बारी-बारी से इन पीपल के पेड़ों के नीचे आकर बैठते हैं। इनमें बच्चों से लेकर जवान और बुजुर्ग सभी शामिल हैं। घरों के कामकाज निपटाने के बाद महिलाएं भी इन पेड़ों के नीचे अपना कुछ वक्त बिताती हैं। प्राथमिक पाठशाला में होने वाले योग को ग्रामीणों ने ऑक्सीजन पीरियड का नाम दे दिया है।
गांव के विनोद शर्मा ने तो स्कूल परिसर में लगे पीपल के पेड़ पर ही अपनी खटिया बिछा ली है। रोजमर्रा के काम निपटाने के बाद वह अपना अधिकांश समय यहीं पर बिताते हैं। पेड़ पर चढ़ने के लिए उन्होंने सीढ़ी रखी हुई है।
कोरोना काल ने मनुष्य को प्रकृति के करीब पहुंचाने और उसे अपना महत्व समझाने का भी प्रयास किया है। यही कारण है कि अब गांव वालों के लिए पीपल का पेड़ जीवन रक्षक बन गया है।