आगरा

विलुप्त होती भाषाओं को संरक्षित कर रहा केंद्रीय हिंदी संस्थान, 40 भाषाओं के तैयार किए अध्येता कोश

आगरा: भारत में अनेकों संस्कृति और भाषाएं पाईं जाती हैं। कुछ भाषाओं को उपयोग करने वालों की संख्या बहुत थोड़ी है। इनके शब्दों और भाषाओं को संरक्षित कर आगे आने वाली पीढ़ी को देने का काम केंद्रीय हिंदी संस्थान ने किया है।

आगरा का केंद्रीय हिंदी संस्थान देश की भाषाओं और बोलियों पर आधारित 51 अध्येता कोश के निर्माण परियोजना पर काम कर रहा है। इसमें से अब तक 40 अध्येता कोश बनकर तैयार हैं। अन्य अध्येता कोश भी जल्द प्रकाशित हो जाऐंगे। इसमें अरुणांचल प्रदेश की 8 बोलियों के कोश, असम की चार, मिजोरम की एक, मेघालय की तीन के साथ ही एक लघु शब्द कोश , सिक्किम की 6 बोली, कारगिल की दो और जल्द ही निकोबार के भी अध्येता कोश तैयार किए जा रहे है। इसके अतिरिक्त संविधान में मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से उनमें से 15 भाषाओं के अध्येता कोश संस्थान द्वारा प्रकाशित किए जा चुके है। इसमें हिंदी-कॉकबरक (त्रिपुरा), हिंदी- मिजो (मिजोरम), हिंदी-निशी (अरुणांचल प्रदेश), हिंदी-गारो, हिंदी खासी (मेघालय), हिंदी-मणिपुरी (मणिपुर), हिंदी- नेपाली (सिक्किम), हिंदी-असमिया (असम), हिंदी-बल्ती (जम्मू-कश्मीर), हिंदी-भूटिया (सिक्किम) आदि अध्येता कोश है।

केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो. नंद किशोर पाण्डेय ने बताया कि ये अध्येता कोश एक प्रकार की डिकस्नरी है। पूर्वोत्तर सहित कई राज्यों में जो भाषाएं प्रचलन में नहीं है। उनके प्रयोग करने वाले थोड़े लोग है और गुम होती भाषाएं हैं। इनके शब्दों को संकलित किया गया है, जिससे ये संरक्षित रहेंगे। सालों से ये काम एक्सपर्ट, हिंदी शिक्षक आदि के साथ बैठकर तैयार किया गया है। इस शब्द कोश को तैयार करने में सालों की मेहनत लगती है। तब जाकर शब्दों का संकलन होता है।

इनके साथ ही जिन भाषाओं के अध्येता कोश प्रकाशित हो चुके है, उनके लोक साहित्य को भी केंद्रीय हिंदी संस्थान प्रकाशित करने जा रहा है। ऐसी करीब 80 भाषाओं के लोक सहित्य प्रकाशित किए जा रहे है।