आगरा (रोमा): उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की कौशल विकास योजना से केंद्रीय कारागार आगरा में निरुद्ध बंदियों ने अपने हुनर के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी अलग पहचान बना ली है। आगरा के केंद्रीय कारागार में सजा काट रहे बंदियों के बनाए कुर्सी, मेज, अलमारी और बुक सेल्फ की मांग तेजी से बढ़ रही है। यही वजह है कि दो साल में करीब दो से ढाई करोड़ का फर्नीचर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भेजा जा चुका है। बंदियों द्वारा बनाए गए इन उत्पादों को अब बाजार में उतारने के साथ ही जेल प्रशासन अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स साइट्स पर भी बेचने पर विचार कर रहा है।
स्वावलंबी बन रहे बंदी
सरकार के कौशल विकास कार्यक्रम से केंद्रीय कारागार में निरुद्ध बंदी स्वावलंबी बन रहे है। केंद्रीय कारागार में वैसे तो कई उद्योग संचालित हो रहे हैं। लेकिन, उनमें से फर्नीचर उद्योग काफी महत्वपूर्ण है। इससे जुड़े बंदियों को अपना हुनर दिखाने का मौका भी मिल रहा है। केंद्रीय कारागार आगरा में 10 साल से फर्नीचर उद्योग संचालित हो रहा है। 40 से 50 बंदी फर्नीचर निर्माण के कार्य में लगे हैं। जेल में बनी वर्कशॉप में सजायाफ्ता यह बंदी कुर्सी, मेज, अलमारी और बुक सेल्फ जैसे कई लकड़ी के फर्नीचर बनाने में अभ्यस्त हैं। यह बंदी लकड़ी से मोहब्बत की निशानी ताजमहल बना चुके है और अब राम मंदिर बनाने की तैयारी में हैं।
बाजार में बढ़ेगा कद
इन बंदियों का बनाया हुआ फर्नीचर काफी टिकाऊ होने के साथ ही फिनिशिंग में भी काफी अच्छा होता है। यह बाजार में मिल रहे फर्नीचर को भी टक्कर दे रहा है। प्रधानमंत्री कौशल विकास कार्यक्रम के तहत अब तक सैकड़ों बंदी अपने हुनर को निखार चुके हैं। कई ऐसे भी है, जो जेल से छूटने के बाद अपने हुनर के बलबूते फिर से समाज की मुख्य धारा में अपनी जगह बना चुके हैं।
दिया गया है प्रशिक्षण
केंद्रीय कारागार आगरा के वरिष्ठ अधीक्षक/ डीआईजी जेल वीके सिंह ने बताया कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे करीब 40 बंदियों में फर्नीचर बनाने का हुनर था। ऐसे बंदियों को प्रशिक्षण देने के बाद इस उद्योग में लगाया गया है। ऑर्डर मिलने पर जेल प्रशासन द्वारा लकड़ी और अन्य सामान खरीदा जाता है, जिससे फर्नीचर तैयार किया जाता है। इसके बाद तैयार फर्नीचर को ऑर्डर के हिसाब से अदालतों में सप्लाई कर दिया जाता है। सबसे ज्यादा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, सहारनपुर, झांसी, फिरोजाबाद, एटा, अलीगढ़ जिलों की अदालतों से ऑर्डर मिल रहे है।
बंदियों की हो रही कमाई
वर्ष 2020-2021 में एक करोड़ का माल भेजा गया था, जबकि 2021-2022 में भी एक करोड़ से अधिक का माल भेजा जा चुका है। उन्होंने बताया कि अब यह हुनरमंद बंदी अपने परिवार का भी सहारा बन रहे हैं। उनके कार्य करने के हिसाब से हर महीने वह चार से छह हजार रुपये तक की कमाई कर रहे है। इसे बंदियों के खाते में जमा करा दिया जाता है, जिससे यह राशि उनके परिवार के काम आ सकें। इनके हुनर को और निखारने के लिए वर्कशॉप में कई आधुनिक मशीनें भी लगाई गई हैं।
कारागार के मुख्य द्वार पर खुलेगी आउटलेट
कारागार में निरुद्ध बंदियों के द्वारा तैयार होने वाले सामान की गुणवत्ता को लेकर भी अभी तक कोई शिकायत नहीं मिली है, जो काफी संतोषजनक है। बंदियों के सामान की क्वालिटी को देखते हुए अब बाजारों में सामान मुहैया कराने को केंद्रीय कारागार के मुख्य द्वार पर सामान की आउटलेट खोलने और अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स साइट्स पर भी बेचने पर जेल प्रशासन विचार कर रहा है।