आगरा (बृज भूषण): दुनिया से लुप्त होने की कगार पर पहुंची कछुओं की सात प्रजातियों के लिए चंबल नदी का पानी संजीवनी साबित हुआ है। लॉकडाउन के दौरान यहां पर कछुओं के कुनबे में अच्छी खासी वृद्धि हुई है। इस बार 7000 नन्हें कछुए चंबल नदी की गोद में पहुंचे है। जबकि पिछली साल 5800 के करीब बच्चे जन्मे थे। 2018 में तो मात्र 1824 कछुए ही जन्मे थे।
अंडों से बाहर निकले नन्हे कछुए
इस बार मार्च में कछुओं ने चंबल नदी के किनारे अंडे दिए थे। जिन्हें चिह्नित कर वन विभाग ने जंगली जानवरों से बचाने के लिए जाली लगा दी थी। जीपीएस से लोकेशन को ट्रेस किया गया था। मई के आखिर में नेस्टों से सरसराहट की आवाज आने पर जाली हटा दी गई थी। नेस्टिंग सीजन में इटावा और बाह रेंज से लाए गए अंडों से निकले कछुओं के बच्चों को कछुआ संरक्षण केंद्र से चंबल नदी में छोड़ा गया।
30 अंडे तक देती है मादा कछुआ
मादा कछुआ 30 अंडे तक देती है। सामान्यत: वह रात में अंडे देती है और अंडे देने के बाद रेत से उसे बालू ढक देती है। अंडे से बच्चों को बाहर निकलने में 60 से 120 दिन तक का समय लगता है। विभिन्न प्रजातियों के बच्चों का अंडे से निकलने का समय भी भिन्न – भिन्न होता है। चंबल नदी में कछुए की सात प्रजातियां का संरक्षण हो रहा है। इसमें साल, धोंढ, धमोका, पचहेडा, कटहवा, चित्रा इण्डिका, बटागुर शामिल है।
उत्तर प्रदेश में मिलती है कछुए की 14 प्रजातियां
पहले कछुओं की ये प्रजातियां गंगा- यमुना सहित सभी प्रमुख नदियों मे पायी जाती थी। लेकिन अब विलुप्तप्राय होते ये कछुआ सिर्फ चंबल नदी में ही पाया जाता है। देश में कछुओं की 228 प्रजातियां पाई जाती है। इनमें 14 केवल उत्तर प्रदेश में है, जिनमें से सात चंबल नदी में है। नेपाल, बांग्लादेश, वर्मा जैसे देशों में शिकार के चलते कछुओं की इन प्रजातियों पर संकट मंडरा रहा है। इन्हें आईयूसीएन की रेड लिस्ट में संकट ग्रस्त प्रजाति की सूची में रखा गया है।